मूंगफली की फसल पर अनुसन्धान की समीक्षा बैठक, सिंचाई जल के कुशलतम निर्धारण पर शोध हो
बीकानेर, 28 अप्रेल। राजस्थान, मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश के विभिन्न केन्द्रों द्वारा वर्ष 2017 से 2021 तक मूंगफली की फसल पर किये गये अनुसंधान कार्यों की समीक्षा के लिए दो दिवसीय समीक्षा बैठक स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशालय में शुक्रवार से प्रारम्भ हुई। यह जानकारी देते हुए अनुसन्धान निदेशक डॉ पी एस शेखावत ने बताया कि प्रोफेसर एस के शर्मा, पूर्व कुलपति चौधरी स्वर्ण कुमार कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर की अध्यक्षता वाली इस समिति में अन्य सदस्य जूनागढ़ के मृदा वैज्ञानिक डॉ एस जी सवालिया, राष्ट्रीय एकीकृत कीट प्रबंधन केंद्र नई दिल्ली के सेवानिवृत निदेशक, डॉ ओ पी शर्मा, महू के सेवानिवृत प्रधान सूक्ष्म जीव विज्ञानी, डॉ ए के सक्सेना तथा सदस्य सचिव के रूप में मूँगफली अनुसन्धान निदेशालय जूनागढ़ के प्रधान वैज्ञानिक, डॉ के के पाल हैं। बैठक में सदस्य सचिव डॉक्टर के के पाल ने बताया कि मूँगफली उत्पादन में राजस्थान का देश में दूसरा स्थान है यहां आठ लाख हैक्टेयर में मूंगफली की खेती होती है तथा औसत उत्पादकता 21 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है जो कि राष्ट्रीय स्तर से अधिक है। उच्च गुणवत्ता के बीज की कमी, यांत्रिकीकरण के अभाव, कालॅर राट, फिजोरियम ब्लाईट, सफेद लट एवं दीमक आदि इस फसल की मुख्य समस्याएं हैं। डा. ए. के. सक्सेना ने भी गुणवत्ता वाले बीजों की उपलब्धता सुनिश्चित करने पर बल दिया। डा. एस. जी. सवालिया ने जलवायु परिवर्तन के कारण मूंगफली के उत्पादन में कमी पर चिन्ता जाहिर करते हुए इस हेतु अनुसंधान करने की आवश्यकता जताई। डा. ओ. पी. शर्मा ने मूंगफली की फसल में कीट नियंत्रण हेतु जैव कीटनाशकों के उपयोग हेतु प्रेरित किया। डा. एस. के. शर्मा ने गुणवत्ता युक्त बीज उत्पादन हेतु राष्ट्रीय स्तर पर बीज उत्पादन केन्द्रों की स्थापना की आवश्कता जताई। उन्होंनें कहा कि सोयाबिन की भांति मूंगफली में भी यांत्रिकीकरण बढाकर फसल उत्पादन लागत को कम करने पर ध्यान देना चाहिए। इस अवसर पर कुलपति डा. अरूण कुमार ने अपने सम्बोधन में कहा कि मूंगफली उत्पादन में सिंचाई जल की मात्रा को कम करने के लिये सिंचाई अन्तराल व क्रान्तिक अवस्थाओं पर अनुसंधान की आवश्कता है। उन्होंनें कहा कि बीकानेर की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए मृदा की जल धारण क्षमता बढाने, वानस्पतिक मल्च लगाने तथा सूक्ष्म सिंचाई विधियां अपनाने की आवश्यकता है ।