देश का पहला मारवाड़ी घोड़े का बच्चा बीकानेर में भ्रूण स्थानांतरण प्रौद्योगिकी से उत्पादित, 23 किलो वजनी बछेड़ी का नाम रखा ‘राज प्रथमा’ – Chhotikashi.com

देश का पहला मारवाड़ी घोड़े का बच्चा बीकानेर में भ्रूण स्थानांतरण प्रौद्योगिकी से उत्पादित, 23 किलो वजनी बछेड़ी का नाम रखा ‘राज प्रथमा’

बीकानेर, 20 मई (सीके मीडिया)। संभाग मुख्यालय पर स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र के अश्व उत्पादन परिसर में राजस्था के वैज्ञानिकों ने भ्रूण स्थानांतरण तकनीक का उपयोग करके घोड़े के बच्चे (बछेड़ी) का उत्पादन किया है। भ्रूण स्थानांतरण प्रौद्योगिकी में ब्लास्टोसिस्ट अवस्था (गर्भाधान के 7.5 दिन बाद) में एक निषेचित भू्रण को दाता घोड़ी से एकत्र किया गया और प्राप्तकर्ता (सरोगेट) मां को सफलतापूर्वक स्थानांतरित कर दिया गया। सरोगेट मां ने एक स्वस्थ बछेड़ी को जन्म दिया है। बछेड़ी का नाम 'राज-प्रथमा' रखा गया और इसका भार 23 किलोग्राम है। राजस्थान में बीकानेर स्थित अश्व उत्पादन परिसर इस प्रक्रिया को पूर्ण करने वाला देश का पहला संस्थान बन गया है। मारवाड़ी घोड़ों की नस्ल आबादी तेजी से घट रही है। भारत में घोड़े की नस्लों की घटती आबादी के संरक्षण और प्रसाद के लिए आईसीएआर-एनआरसीई लगन से काम कर रहा है। इस दिशा में मारवाड़ी घोड़े की नस्ल के भू्रणों को हिमपातीय परिरक्षण करने के लिए एक परियोजना शुरु की गयी थी।राष्ट्रीय पशुधन मिशन की एक परियोजना के तहत डॉ. टीआर टल्लूरी, डॉ. यशपाल शर्मा, डॉ. आर.ए.लेघा और डॉ. आर.के देदार ने मारवाड़ी घोड़ी में सफल भू्रण स्थानांतरित किया। इस परियोजना में टीम को डॉ. सज्जन कुमार, मनीष चौहान ने भी सहयोग दिया। डॉ. जितेंद्र सिंह ने कृषि प्रबंधन में सहायता की। इस अवसर पर बताया गया कि आज तक टीम ने 10 मारवाड़ी घोड़े के भू्रणों को सफलतापूर्वक विट्रिफिगेशन भी किया है। आगे का काम अधिक घोड़े के भू्रणों को हिमपातीय परिरक्षण करने वाला है। वैज्ञानिकों की टीम को बधाई देते हुए निदेशक आईसीएआर, राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र डॉ. टी.के.भट्टाचार्य ने कहा कि भारत में घोड़ों की आबादी तेजी से घट रही है और बांझपन और गैर-प्रजनन करने वाली घोड़ी भी इसका एक कारण है। यह तकनीक ऐसे जानवरों से बछेड़े प्राप्त करने के लिए बहुत उपयोगी हो सकती है और उत्कृष्ट जानवरों से अधिक बछेड़े प्राप्त करने की सुविधा भी प्रदान कर सकती है। यह उन जानवरों पर भी लागू किया जा सकता है जो बांझपन की पारंपरिक उपचार प्रणाली की प्रतिक्रिया नहीं देते हैं। उन्होंने बताया कि भारत मेें भू्रण स्थानांतरण प्रौद्योगिकी के माध्यम से उत्पादित पहली मारवाड़ी बछेड़ी है।


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