महाराष्ट्र प्रदेश काँग्रेस के राज्य प्रवक्ता गोपालदादा तिवारी का तंज ; राजनीतिज्ञों द्वारा ‘सरकारी नियुक्ति पत्र’ देना नैतिक संकेतों का उल्लंघन
‘सर्वोच्च न्यायालय’ नियम ताक पर रखने की प्रक्रिया का लें गंभीर संज्ञान
पुणे। बीती सरकारों के समय में ‘सरकारी नौकरियों’ में भ्रष्टाचार होने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आरोप पूरी तरह से अनर्गल है और तथ्यों से परे हैं। जबकि बीते नौ वर्षों में मोदी सरकार द्वारा भ्रष्टाचार के मामले में एक भी ऐसे आरोपयुक्त अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई ना करना, यह उनकी नाकामी का सबूत है। प्रधानमंत्री मोदी सिर्फ राजनैतिक पार्टियों को ही नहीं, बल्कि ‘भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था’ को तथा देश को बदनाम कर रहे हैं, ऐसा तंज महाराष्ट्र काँग्रेस के राज्य प्रवक्ता गोपालदादा तिवारी ने कसा है।
राजनीतिक लोगों द्वारा युवाओं को “सरकारी नौकरियों” के पत्र सौंपने की प्रक्रिया पर जारी अपनी विज्ञप्ति में गोपालदादा तिवारी ने कहा कि इस समय भारतीय प्रशासनिक सेवा में करीब 30 लाख से अधिक पद खाली पड़े है। हालांकि, सरकारी प्रशासन व्सवस्था’ में रिटायर होने वाले लोगों की जगह पर, नये कर्मचारियों की नियुक्ति करना एक ‘नैसर्गिक प्रशासनिक प्रक्रिया’ है, जो कि मोदी सरकार द्वारा अमल में नहीं लायी जा रही है। युपीएससी तथा एमपीएससी, स्टाफ सिलेक्शन कमिटी आदि के माध्यम से सामान्य रूप से भर्ती प्रक्रिया रहती है। उम्मीदवार सिलेक्ट होने पर अधिकृत वरिष्ठतम अधिकारियों से उन्हें नियुक्ति पत्र भेजे जाते है। यह संवैधानिक तथा कानुनन प्रक्रिया है। परंतु मोदी सरकार राजनीतिक नेताओं के माध्यम से युवाओं को सरकारी तथा प्रशासकीय नियुक्ति पत्र बांटने की प्रक्रिया पूरी तरह से असंवैधानिक तथा नैतिक संकेतों का उल्लंघन है। दूसरी ओर केंद्रीय सेवाओं में यूपीएससी और राज्यों में एमपीएससी तथा स्टाफ सिलेक्शन कमिटी द्वारा प्रतियोगिता परीक्षा, साक्षात्कार लेकर वरिष्ठ प्रशासकीय पद जैसे कि आईएएस, आईपीएस की भर्ती होती है। लेकिन मोदी सरकार इस प्रस्थापित शासकीय प्रक्रिया को खत्म कर अब सरकारी अधिकारियों की सीधी नियुक्तियां कर रही है, यह सरासर नैतिक मुल्यों का उल्लंघन है।
गोपालदादा तिवारी ने विज्ञप्ति में कहा है कि पहले के सरकारों में सरकारी कर्मचारियों की नियुक्ति पत्रों द्वारा वरिष्ठ अधिकारी करते थे और संबंधित युवा को नियुक्ति पत्र डाक से भेजा जाता था, लेकिन आज मोदी सरकार ‘सरकारी कर्मचारियों’की नियुक्तियों के लिए बड़े-बड़े सम्मेलनों का आयोजन कर रही है
और सरकारी नौकरी के नियुक्ति पत्र देकर उन्हें भाजपा द्वारा रोजगार देकर उपकृत करने की भावना और यह जताने का प्रयास किया जा रहा है। इसके परिणाम प्रशासनिक अघिकारी के मानसिकता पर, उसे निष्पक्ष काम तथा कर्तव्य करने पर पड़ सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय खुद लें संज्ञान..
इस पूरी स्थिति को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय मोदी सरकार और भाजपा के इस "खेल" पर खुद होकर संज्ञान लें और इस तरह के रोजगार के नाम पर सरकारी नौकरियों के पत्र देने वाले आयोजनों पर रोक लगाने की माँग की है।