डॉ. रजनीश हर्ष को सीनियर फैलोशिप अवॉर्ड हेतु चयन, प्रसिद्ध हवेलियों के दरवाजों, खिड़कियों व झरोखों की स्वर्ण नक्काशी पर होगा शोध
जयपुर। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की ओर से जूनियर व सीनियर रिसर्च फेलोशिप अवार्ड की घोषणा की गई है। इस बार वर्ष 2020-21 व 2021-22 की फैलोशिप अवॉर्ड एक साथ प्रदान किए गए हैं। वर्ष 2021-22 की रिसर्च फैलोशिप अवॉर्ड में विजुअल आर्ट श्रेणी में मूल रूप से बीकानेर निवासी डॉ. रजनीश हर्ष को सीनियर फैलोशिप अवॉर्ड हेतु चयन किया गया है। इसके लिए चयनित होने वाले डॉ. रजनीश राजस्थान के एकमात्र कलाकार हैं। वे वर्तमान में राजस्थान ललित कला अकादमी में सचिव के रूप में कार्यरत हैं। यह फेलोशिप दो वर्ष के लिए प्रदान की जाती है।
इसके अंतर्गत डॉ. रजनीश हर्ष बीकानेर की स्थापत्य कला में अपना रिसर्च पेपर करेंगे। इस रिसर्च पेपर में बीकानेर की हवेलियों में बने लकड़ी के दरवाजे, खिड़की व झरोखों में जो महीन कारीगिरी अलंकृत है, डॉ. रजनीश हर्ष इस कलात्मक कार्य को अपने रिसर्च पेपर में लिखेंगे। उल्लेखनीय है कि ये हवेलियां 400-500 साल पुरानी है और वर्तमान में इनमें से अधिकांश जर्जर अवस्था है। इनमें सोने की कलम ओर मथेरन कला का अद्भुत कार्य किया हुआ है। उस समय जिन कलाकारों ने ये लकड़ी के ऊपर कोरणी का कार्य किया है इस शोध पत्र में डॉ. रजनीश उसे भी अपने रिसर्च पेपर में शामिल करेंगे।
फोर्ट जूनागढ़ का किला अखरोट के पेड़ की लकड़ी का काम किया गया है लकड़ी और पत्थर का काम सेम है। डॉ. रजनीश हर्ष ने बताया कि बीकानेर को हजार हवेलियों का शहर कहा जाता है, जहां प्रस्तर खंड का काम हुआ है। जहां कोरनी सोने की कलम का काम, जिसे मथेरन कला भी कहते हैं, यह रिसर्च उन सभी पर आधारित होगा। जूनागढ़ फोर्ट, जहां पर अखरोट की लकड़ी और पत्थर का काम है, लोग आज भी इस कला से अचंभित हैं कि लकड़ी और पत्थर का काम देखने में हूबहू एक समान लगता है, जबकि इस दोनों के कारीगर अलग- अलग होते थे। हवेलियों के अभी तक जितने भी रिसर्च हुए हैं, उनमें अधिकतर रिसर्च पत्थर के काम पर किए गए हैं। डॉ. रजनीश कहते हैं कि लकड़ी के काम पर रिसर्च किया जाना बेहद जरूरी है, ताकि कई तरह की लुप्त होती कला के बारे में आज की युवा पीढ़ी को जानकारी मिल पाए। मेरा भी यही उद्देश्य है कि हेरिटेज के नाम पर सिर्फ इमारतों के बारे में बात ना की जाए, बल्कि खिड़की, दरवाजे व झरोखों व इनकी महीन कारीगरी पर भी रिसर्च होना चाहिए।
बीकानेर की रामपुरिया हवेली, पूनम चंद कोठारी की हवेली, शीन महाराज की हवेली, वेदों की हवेली में बने खिड़की, दरवाजे व झरोखों पर कोरनी, सोने की कलम का काम मथेरन कला की गई है उन पर रिसर्च किया जाएगा।