केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने किया लेखक और विचारक डॉ. बलराम मिश्रा की पुस्तक ‘धर्म विस-ए-विस रिलिजन’ का विमोचन – Chhotikashi.com

केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने किया लेखक और विचारक डॉ. बलराम मिश्रा की पुस्तक ‘धर्म विस-ए-विस रिलिजन’ का विमोचन

  बेंगलूरु। लेखक और विचारक डॉ. बलराम मिश्रा की पुस्तक ‘धर्म विस-ए-विस रिलिजन’ बेंगलूरु में लॉन्च की गई। केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने किताब का विमोचन किया। इसमें डॉ. मिश्रा ने सनातन और अन्य धर्मों को लेकर एक स्पष्ट नजरिया पेश करने का प्रयास किया है। अपनी पुस्तक में मिश्रा ने होलोकास्ट, फतवा, उपद्रव, हिंसा को किसी धर्म का हिस्सा बताने के बजाय इसका उद्गम रिलीजन से होने का दावा किया है। मिश्रा अपनी इस नई किताब में लिखा हैं कि “दुनिया भर में धर्म के नाम पर जो हिंसा हो रही है, यह धर्म नहीं बल्कि रिलिजन की वजह से हो रही है। जब धर्म का प्रकाश चला जाता है, तो वहां अंधकार आ ही जाता है। सनातन धर्म लाइफ की वैल्यूज सबके लिए समान हैं।“ धर्म और रिलिजन में है बड़ा अंतर.. किताब के लेखक डॉ. बलराम मिश्रा ने बताया कि, “मैंने यह स्टैब्लिश करने का प्रयास किया है कि, धर्म और रिलिजन दोनों अलग-अलग चीजें हैं। धर्म के अभाव में रिलिजन आ जाता है। इस पुस्तक में जहां ब्लडशेड हुआ है, मैंने उन्हें कोट किया है। इस्लाम में फतवा है, इनट्यूशन है- ये सारे रिलिजन के विषय हैं। जीसस और हजरत मोहम्मद ने धर्म को जिया था, लेकिन उनके अनुयायियों ने रिलिजन को जिया। इसलिए क्रिश्चियैनिटी और इस्लाम में बहुत ज्यादा ब्लडशेड हुआ है, आदमी ने आदमी को मारा है। जो आज हमास और इजराइल में हो रहा है। धर्म के आचरण पर रिलिजन इर्रेलेवेंट हो जाता है। आज आवश्यकता इस बात की है कि सनातन धर्म, हजरत मोहम्मद की वाणी उनका व्यवहार, जीसस क्राइस्ट की वाणी उनके शब्द वचन और समाज में उनका व्यवहार इन तीनों को एक प्लेटफॉर्म पर आकर काम करने की आवश्यकता है। तभी विश्व में शांति रह सकती है। इस तरह आया इस विषय पर किताब लिखने का ख्याल.. किताब लिखने की प्रेरणा का जिक्र करते हुए डॉ. बलराम मिश्रा ने बताया कि, आरएसएस के प्रवक्ता माधव गोविंद वैद्य ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। जिसमें एक पत्रकार ने उनसे पूछा कि, धर्मार्थ चिकित्सालय में क्या डॉक्टर धर्म के आधार पर इलाज करते हैं, या कोई पक्षपात होता है ? क्या किसी धर्म कांटा में धर्म को तौला जाता है। उसी से मुझे प्रेरणा मिली और मैंने तमाम ग्रंथों से जानकारी इकट्ठी करनी शुरू कर दी। हमने प्रमुख रूप से तीन रिलिजन- ईसाइयत जो पहले आई थी, इस्लाम और हिंदुत्व के बारे में रिसर्च की। बता दें कि, हिंदुत्व रिलिजन है और सनातन धर्म अलग है। हिंदुत्व उससे हटकर है। इस दौरान मैंने अपने अध्ययन के दौरान पाया कि, हजरत मोहम्मद ने धर्म को जिया। सत्ताधीशों ने उनका यूज किया। रिलिजन को केंचुए की तरह इस्तेमाल किया ताकि सत्ता रूपी मछली पकड़ी जा सके। उस समय रोम और ब्रिटेन समेत कई जगहों के बड़े राजाओं ने इसका इस्तेमाल किया और आज तक रिलिजन का इसी तरह इस्तेमाल जारी है। इस बुक में रिलिजन और धर्म दोनों के ही उदाहरण हैं। उनके जीवन के बारे में भी इस बुक में उच्चकोटि कुछ घटनाओं का वर्णन है कि, किस तरह से धर्म रहता था और वे चाहते थे कि सिर्फ मनुष्य जाति रहे। पहले यह सब नहीं होता था कि, कौन किस जाति का है, वे समाज के किस क्षेत्र से आते हैं या किस मजहब के हैं। सनातन धर्म में भी ऐसा ही था। लेकिन राजनीति ने सब बदल दिया। इसी बात को किताब में बताने की कोशिश की गई है। यह किताब फिलहाल अंग्रेजी भाषा में लिखी गई है। डॉ मिश्रा के मुताबिक इस किताब को लिखने के लिए सारी जानकारी अन्य किताबों और ग्रंथों से ली गई है। मैंने सभी जानकारियों को कोट करके लिखा है, मैंने सबकी बात को वर्बेटिम रखा है। न मैंने सुना है, न देखा है, मैंने जो पढ़ा, वही लिखा है। किताब में बताया गया है कि, क्रिश्चियैनिटी ने किस तरह से जीसस की इमेज को मिटाने की कोशिश की या उस पर लांछन लगाने की या उसे प्रभावित करने की कोशिश की। वहीं इस्लाम के लोगों ने हजरत मोहम्मद की उच्चकोटि की इमेज को ऐसी जगह लाकर पटक दिया है कि कई लोग उन्हें आतंकवाद का जन्मदाता भी कहने लगे हैं। हालांकि सच्चाई यही है कि ये धार्मिक व्यक्तित्व थे, लेकिन सत्ता ने उनके पावन चरित्र को गिरा दिया। अब यह सनातन धर्म का कर्तव्य है कि, वे उनको वापस लाएं और सनातन धर्म और ये तीनों इकट्ठे बैठकर जन कल्याण करें। डॉ मिश्रा का दावा है कि हिंदुत्व ट्रेंड में है और यह भी वजह है कि आए दिन इस सब्जेक्ट पर नई किताबें आ रही हैं, लेकिन वे दावा करते हैं कि उनकी ये कृति अन्य किताबों से अलग है क्योंकि इसमें यह साबित करने की कोशिश की गई है कि “हिन्दू, इस्लाम और क्रिश्चियैनिटी से बढ़कर धर्म है और धर्म केवल एक ही है सनातन, जिसे इन सभी ने जीया है।“


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