उष्ट्र प्रजाति की घटती संख्या एवं सीमित होते उपयोग को वैज्ञानिक एक चुनौती के रूप में लें : डॉ. राघवेंद्र भट्टा – Chhotikashi.com

उष्ट्र प्रजाति की घटती संख्या एवं सीमित होते उपयोग को वैज्ञानिक एक चुनौती के रूप में लें : डॉ. राघवेंद्र भट्टा

बीकानेर। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली उप महानिदेशक (पशु विज्ञान) डॉ. राघवेन्द्र भट्टा ने कहा कि अनुसंधान की दिशा में टॉप 5 संस्थानों में राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीसी) द्वारा पहचाना बनाना निश्चित रूप से सराहनीय है। परंतु बदलते परिवेश में उष्ट्र प्रजाति की घटती संख्या एवं सीमित होते उपयोग को वैज्ञानिक एक चुनौती के रूप में लें। राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीसी) में ‘उष्ट्र अनुसंधान के विविध आयाम’ विषयक परिचर्चा में उन्होंने अनूठी प्रजाति ‘ऊंट’ पर कार्य करने को गौरव का विषय बताते हुए अनुसंधान कार्यों में ठोस व त्वरित परिणाम के लिए अपने कार्यों में नवाचार लाते हुए समन्वयात्मक के रूप में आगे बढ्ने हेतु प्रोत्साहित किया। उप महानिदेशक ने कहा कि जिस किसी संस्थान में आप कार्यरत है, वहां समर्पित व सकारात्मक प्रवृत्ति से कार्य करेंगे तो न केवल उपयुक्त वातावरण का सृजन करने में सहायक बनेंगे बल्कि संस्थान के अनुसंधान कार्य भी अधिक तीव्र गति की ओर अग्रसर होते हुए लक्ष्य प्राप्ति की जा सकेगी। परिचर्चा में डॉ. शिव प्रसाद किमोथी, सदस्य,कृषि वैज्ञानिक चंयन मंडल, नई दिल्ली ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के माध्यम से देश के किसानों की खुशहाली के लिए योगदान देने को एक सुअवसर बताते हुए कहा कि अनुसंधान के विविध क्षेत्र में श्रेष्ठ वैज्ञानिकों के आगे आने तथा विकसित प्रौद्योगिकी से अंतिम छोर तक इसका लाभ पहुंचाने के ध्येय से मिलकर काम करना चाहिए ताकि देश और अधिक प्रगति कर सकें। उन्होंने ऊंटों की सीमित संख्या पर विवेचना व सतत कार्य की आवश्यकता जताई। केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने एनआरसीसी के कार्यक्षेत्र एवं अनुसंधान उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह संस्थान ‘ऊंट’ को ‘डेजर्ट टू मेडिसिन अप्रोच’ की नीति पर कार्य कर रहा है ताकि इस प्रजाति के औषधीय दूध को विविध माध्यम से मानव स्वास्थ्य लाभ के लिए पहुंचाया जा सकें। डॉ.साहू ने डेंगू, डायबिटीज, टीबी आदि सामयिक बीमारियों में ऊंटनी के दूध से लाभ पहुंचाने जैसे कई अनुसंधान कार्यों की भी जानकारी दीं। डॉ.ए.के.तोमर, निदेशक, केन्द्रीय भेड् एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानर ने वैज्ञानिक को प्रोत्साहित करते हुए संस्थान की कार्य प्रणाली, नई तकनीकी एवं इनसे जुड़े प्रशिक्षण आदि पर अपने विचार रखें। इस परिचर्चा की रूपरेखा प्रधान वैज्ञानिक डॉ.राकेश रंजन ने तैयार की तथा धन्यवाद प्रस्ताव डॉ.आर.के.सावल ने ज्ञापित किया।


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