बीकानेर। श्राद्ध पूर्वजों के प्रति सच्ची श्रद्धा का प्रतीक है। पित्तरों के निमित विधिपूर्वक जो कर्म श्रद्धा से किया जाता है, उसी को श्राद्ध कहते हैं। हिंदू धर्म के अनुसार प्रत्येक शुभ कार्य के प्रारंभ में माता-पिता, पूर्वजों को नमस्कार या प्रणाम करना हमारा कर्त्तव्य है।
इस जानकारी के साथ बीकानेर संभाग मुख्यालय स्थित चमत्कारी श्री बड़ा हनुमानजी मंदिर के विद्वान मुख्य पुजारी पंडित बसंत राज स्वामी ने बताया कि हमारे पूर्वजों की वंश परंपरा के कारण ही हम आज यह जीवन देख रहे हैं। इस धर्म में ऋषियों ने वर्ष में एक पक्ष का पितृ पक्ष नाम दिया। उन्होंने बताया कि पितृ का अर्थ है पिता, किंतु पित्तर शब्द जो दो अर्थों में प्रयुक्त होता है, व्यक्ति के आगे तीन मृत पूर्वज, मान जाति के प्रारंभ या प्राचीन पूर्वज जो एक पृथक लोक के अधिवासी के रुप में कल्पित हैं। हिंदु धर्म में पितृ पक्ष का बहुत महत्व है। यह 15 दिन की अवधि होती है, जिसमें पित्तरों का तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध किया जाता है। पितृ पक्ष हर वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होते हैं।मान्यताओं के अनुसार पितृ पक्ष की अवधि के दौरान पित्तरों का धरती पर आगमन होता है। पुजारीजी के अनुसार पित्तरों को आस होती है कि हमारे पुत्र-पौत्र पितृ पक्ष में पिंडदान भरकर हमें संतुष्ट करेंगे और वे जीवन में सुख-समृद्धि और यश प्राप्त करेंगे। उन्होंने बताया कि हिंदू परंपरा के अनुसार श्राद्ध पक्ष को दिवंगत आत्माओं से आशीष लेने का महापर्व माना जाता है। गरुड़ पुराण के अनुसार पितृ पक्ष में पितृ पूजन से संतुष्ट होकर पित्तर मनुष्यों के लिए आयु, पुत्र, यक्ष, स्वर्ग, कर्ति, पुष्टि, बल, वैभव, सुख, धन और धान्य देते हैं। मार्कंडेय पुराण के अनुसार श्राद्ध से तृप्त होकर पितृगण श्राद्धकर्ता को दीर्घायु संतुष्टि, धन, विद्या, सुख, राज्य स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करते हैं। पित्तरों के पिंडदान का महत्व कई धार्मिक स्थानों में भी करने का प्रावधान है। इनमें गया, बद्रीनाथ धाम, गंगोत्री, यमुनोत्री और हरिद्वार आदि धार्मिक स्थान हैं। इसके अतिरिक्त हरियाणा के कुरुक्षेत्र से कुछ ही दूरी पर
पेहवा नामक धार्मिक स्थान है, जहां पर किसी का आकस्मिक निधन होने पर या स्वेच्छा से अपने पित्तरों का पिंडदान भरा जाता है। हमें अपने पित्तरों का श्राद्ध पितृ पक्ष में श्रद्धापूर्वक करना चाहिए। इसके अतिरिक्त हमें अपने पित्तरों का वार्षिक श्राद्ध (खैर श्राद्ध) भी अपने सामर्थ्य अनुसार अवश्य करना चाहिए, जिससे हमारे पित्तर संतुष्ट हों और हमें उनका आशीर्वाद प्राप्त हो, क्योंकि उन्हीं की कृपा से हम यह दुनिया देख रहे हैं। हमारे बच्चों को हमारी तीन पीढ़ी के पूर्वजों का ज्ञान होना चाहिए। पंडित स्वामीजी ने बताया कि गया में पित्तरों के पिंडदान का भी विशेष महत्व है। विष्णु पुराण और वायु पुराण में गया नामक स्थान का विशेष उल्लेख है। यह भी मान्यता है कि विष्णु यहां पर पित्तर देवता के रुप में मौजूद हैं। इसलिए इसे पितृ तीर्थ भी कहते हैं। भगवान श्रीरामजी ने अपने पिता दशरथजी का पिंडदान गया में भरा था। श्राद्धों में पंचवलि का विधान है।
1. गौ ग्रासः गाय के अन्न और जल धरण करना 2. श्वान (कुत्ते) को अन्न खिलाना 3. काक : कोए को रोटी खिलाना 4. पिपिलिका ( चींटिया) : अन्न दान करना 5. अतिथि (ब्राह्मण): भोजन, फल, वस्त्र, दक्षिणा दान करना। श्राद्ध के दिन पिंडदान और पितृ तर्पण अवश्य करना चाहिए। हिंदु धर्म के अनुसार पूर्वजों की तीन पीढ़ियों की आत्माएं पितृलोक में निवास करती हैं, जो स्वर्ग और पृथ्वी के बीच का स्थान माना जाता है । यह क्षेत्र मृत्यु के देवता यम द्वारा शामिल है, जो एक मरते हुए आदमी को पृथ्वी से पितृलोक तक ले जाता है, जब अगली पीढ़ी का आदमी मर जाता है, तो पहली पीढ़ी स्वर्ग में जाती है और भगवान के साथ फिर से मिल जाते हैं, इसिलए श्राद्ध का प्रसाद नहीं दिया जाता है। इस प्रकार पितृलोक में केवल तीन पीढ़ियों को श्राद्ध संस्कार दिया जाता है, जिसमें यम की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यहां पर एक प्रसंग का उल्लेख करते हुए कहा कि एक परिवार कुल पुरोहत के आदेशानुसार अपने पूर्वजों का पिंडदान करने के लिए स्वेच्छा से कुरुक्षेत्र से कुछ दूरी पर पेहवा धार्मिक स्थान में पिंड भरने गया था। उन्होंने स्वेच्छा से अपने पित्तरों का पिंडदान भरा।
पंडित को केवल उन्होंने दादा के नाम की ही जानकारी दी, तो पंडित ने उनसे अमेरिका के राष्ट्रपति का नाम पूछा, तो उन्होंने तपाक से बता दिया। पंडित ने कहा कि आपको अपने पूर्वजों के नाम का ज्ञान नहीं है और अमेरिका के राष्ट्रपति का नाम याद है। ऐसे में उस परिवार को शर्मिंदा होना पड़ा। कहने का भाव यह है कि हमें अपने बच्चों को अपनी कम से कम तीन पीढ़ियों की जानकारी देनी चाहिए।
पुजारी बसंत राज स्वामीजी ने बताया कि इस वर्ष 7 सितंबर से 21 सितंबर तक पितृ पक्ष मनाया जा रहा है, जिनकी तिथि इस प्रकार से है, पूर्णिमा श्राद्ध- 7 सितंबर, प्रतिपदा - 8 सितंबर, द्वितीय- 9 सितंबर, तृतीय- 10 सितंबर, चतुर्थी - 11 सितंबर, पंचमी - 12 सितंबर 10 बजे के बाद (शुक्रवार), षष्टी 12 सितंबर 10 बजे के बाद (शुक्रवार), सप्तमी - 12 सितंबर 7-24 के बाद, अष्टमी - 14 सितंबर, नवमी - 15 सितंबर, 10वीं- 16 सितंबर, एकादशी- 17 सितंबर, द्वादशी का श्राद्ध- 18 सितंबर, त्रयोदशी 10 सितंबर, चतुर्दशी- 20 सितंबर, अमावस्या सर्वपितृ श्राद्ध- 21 सितंबर 2025. मातृ-पितृ छाया सब पर बनी रहे।