बीकानेर में जोधपुर की प्रिंसेस शिवरंजनी राजे ने शुरू किया ‘आई लव कैमल मिल्क’ अभियान – Chhotikashi.com

बीकानेर में जोधपुर की प्रिंसेस शिवरंजनी राजे ने शुरू किया ‘आई लव कैमल मिल्क’ अभियान

  बीकानेर। राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर (एनआरसीसी) में आज ‘ऊंट विरासत, संरक्षण एवं उद्यमिता’ विषय पर एक गहन विचार गोष्ठी (ब्रेन स्‍टोर्मिंग सेशन) का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में जोधपुर की प्रिंसेस शिवरंजनी राजे, विशेषज्ञ वार्ताकार राजुवास बीकानेर के कुलगुरु डॉ. सुमन्त व्यास, तथा अंतरराष्ट्रीय ऊंट विशेषज्ञ डॉ. पियर्स सिम्पकिन ने सहभागिता की। कार्यक्रम की अध्यक्षता केन्द्र के निदेशक डॉ. अनिल कुमार पूनिया ने की। एनआरसीसी के सभी वैज्ञानिकों ने इस गतिवधि में सक्रिय सहभागिता निभाई। गोष्‍ठी में मुख्‍य संबोधन के दौरान प्रिंसेस शिवरंजनी राजे ने ऊंट प्रजाति के संरक्षण को अपनी “प्राकृतिक धरोहर” बताते हुए कहा कि उन्हें, एनआरसीसी में आकर खुशी हुई और वे मारवाड़ की बेटी होने के नाते ऊंटाें के संरक्षण हेतु प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने बताया कि भले ही वे अनुसंधान विशेषज्ञ नहीं हैं, लेकिन उनका प्रदेश की भूमि, सांस्‍कृतिक विरासत, निवासियों तथा पशुधन के प्रति एक विशेष जूनून है, अत: वे इस प्रजाति के लिए कार्यरत संस्थानों और उष्‍ट्र संबंद्ध समुदायों के लिए सार्थक प्रयास करेंगी। उन्होंने कहा कि ऊंट प्रजाति को बचाने के लिए उसके चरागाह क्षेत्रों को सुरक्षित करना होगा। प्रिंसेस राजे ने स्थानीय घासों का ऊंट पालन में महत्‍व को उजागर करते हुए कहा कि मानव आबादी का विकास महत्वपूर्ण है, परन्तु पशुओं को भी महत्व दिया जाना चाहिए। इस अवसर पर उन्‍होंने ‘‘आई लव कैमल मिल्क’ अभियान की शुरूआत की तथा केन्‍द्र द्वारा विकसित ऊंटनी के दूध से बनी आइसक्रीम उत्‍पाद का भी उत्‍सुकता से स्‍वाद लिया। इस अवसर पर राजुवास के कुलगुरू डॉ. सुमन्‍त व्यास ने कहा कि मानव सभ्यता, अर्थव्यवस्था और थार के विकास में ऊंट का योगदान ऐतिहासिक और अद्वितीय रहा है। कार्यक्रम में निदेशक डॉ. अनिल कुमार पूनिया ने कहा कि एनआरसीसी के सभी कार्यों का केंद्रबिन्‍दु सदैव ‘ऊँट व ऊँटपालक’ रहा है। उन्होंने संस्थान की अनुसंधान उपलब्धियों और प्रौद्योगिकीय विकास का उल्लेख करते हुए बताया कि ऊंटनी के दूध को केवल “दूध” कहना उचित नहीं—यह “फूडीस्‍यूटिकल”, अर्थात भोजन और औषधीय गुणों का अनोखा मिश्रण है। ब्रेन स्टॉर्मिंग सत्र में भाग लेते हुए डॉ. पियर्स सिम्पकिन ने केन्या में ऊंटों पर अपने अनुसंधान का उल्लेख किया और बताया कि बदलती जलवायु परिस्थितियों में ऊँट एक ऐसी प्रजाति है, जो नॉन-इक्विलिब्रियम इकोसिस्टम में भी अद्भुत रूप से अनुकूलन (adapt) कर लेती है। उन्होंने केन्या सरकार द्वारा ऊंट सेक्टर में किए जा रहे विभिन्न इंटरवेंशनों और उनके प्रभाव पर प्रकाश डाला, तथा भारतीय ऊंट परिस्थिति के साथ उसकी तुलनात्मक चर्चा की। डॉ. पियर्स ने कहा कि भविष्य में भारत और केन्या के बीच समन्वयात्मक एवं सहयोगी अनुसंधान की संभावनाएँ प्रबल हैं, और इस दिशा में संयुक्त प्रयास किए जाएंगे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. श्‍याम सुंदर चौधरी, वैज्ञानिक द्वारा किया गया तथा धन्‍यवाद प्रस्‍ताव केन्‍द्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राकेश रंजन ने प्रस्‍तुत किया।


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