श्रीमुनिसुव्रत स्वामी राजेंद्रसूरिजिन गुरुमंदिर ट्रस्ट पुणे के तत्वावधान में चातुर्मासिक प्रवचन : अहंकार व अभिमान का त्यागें-साध्वीश्री भव्यगुणाश्रीजी – Chhotikashi.com

श्रीमुनिसुव्रत स्वामी राजेंद्रसूरिजिन गुरुमंदिर ट्रस्ट पुणे के तत्वावधान में चातुर्मासिक प्रवचन : अहंकार व अभिमान का त्यागें-साध्वीश्री भव्यगुणाश्रीजी

पुणे। श्री सौधर्म बृहत्तपोगच्छीय त्रिस्तुतिक संघ श्रीमुनिसुव्रत स्वामी राजेंद्रसूरि जिन - गुरुमंदिर ट्रस्ट पुणे के तत्वावधान में स्थानीय शुक्रवार में आयोजित चातुर्मास में विराजित ज्योतिष ज्योतिका विद्वान साध्वीश्री भव्यगुणाश्रीजी ने कहा कि जीवन को सार्थक बनाना है तो करना होगा अहंकार व अभिमान का त्याग। उन्होंने कहा कि साधन जुटाने की होड़ में मनुष्य साधना भूल रहा है। जीवन में जब तक अंहकार रहेगा, तब तक साधना का फल नहीं मिल पाएगा। यदि हमें अपनी तप, संयम व साधना को सार्थक व सफल बनाना है तो जीवन से अहंकार व अभिमान का त्याग करना होगा। इस अंहकार के कारण ही रावण, कंस, दुर्योधन जैसी दुरात्माओं का इस संसार से समूल नाश हो गया। साध्वीजी बोले, अहंकार हमारी सारी साधना व उपलब्धियों पर पानी फेर देता है। मनुष्य और परमात्मा के मध्य श्रद्धा का रिश्ता दरकने से लोग कई बार कहते हैं, मैं परमात्मा को नहीं मानता। परमात्मा को भूलने से जीवन में दुःख व परेशानियों का आगमन होता है। भीतर के प्रभाव को भूलने से हमारी आत्मा भी संकुचित हो रही है। अहंकार से उबर कर हम अपने आसपास नजर डालेंगे तो हर जगह सुख,शांति व आनंद नजर आएगा। उन्होंने यह भी कहा कि क्रोध हमेशा समस्या बढ़ाता है जबकि करूणा व प्रेम समस्या समाधान का आधार होते है। क्रोध जीवन को नरक भी बना सकता है। हमारे अंदर परमात्मा की ज्योति जगने पर बाहरी प्रकाश नहीं देखना पड़ेगा। अंहकारी का जीवन कभी सार्थक नहीं हो सकता। कई बार व्यक्ति खूब मेहनत करता है उसके बावजूद उसे पूरा फल नहीं मिलता। वह गहनता से पड़ताल करता है कि उसका अहंकार उसकी प्रगति व आत्मकल्याण की राह में सबसे बड़ा रोडा बना गया है। हमारा अभिमान हमें कई बार सच्चाई तक पहुंचने नहीं देता व हम झूठ को ही सच मानने लगते है। इससे हमारे जीवन में परेशानियों का आगमन होता है। इस दौरान मधुर भाषी साध्वीश्री शीतलगुणाश्रीजी ने कहा कि मनुष्य साधन जुटाने की होड़ में इस कदर उलझा हुआ है कि वह जीवन के मूल लक्ष्य साधना को भी भूूलता जा रहा है। जब तक हमारी साधना उत्तम नहीं होगी तब तक कोई भी साधन हमें परमात्मा तक नहीं पहुंचा सकते है। साधना के मार्ग पर चलकर ही असीम सुख व शांति की अनुभूति हो सकती है, कर्मो का क्षय इसी से होगा। शरीर को तपाने पर आत्मा में निखार आता है। उन्होंने कहा कि आत्मा निखरेगी तो मुक्ति की राह यानि आत्मकल्याण का लक्ष्य भी हमारे लिए आसान हो जाएगा।


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