चातुर्मास समाप्ति के अंतिम दिन के प्रवचन में बोले साध्वीवृंद-साधु-संतों से नहीं, उनके प्रवचन से प्रेम करें : साध्वी भव्यगुणाश्रीजी
पुणे। श्री सौधर्म बृहत्तपोगच्छीय त्रिस्तुतिक संघ श्रीमुनिसुव्रत स्वामी राजेंद्रसूरि जिन - गुरुमंदिर ट्रस्ट पुणे के तत्वावधान में आयोजित चातुर्मास में विराजित साध्वीश्री भव्यगुणाश्रीजी ने कहा कि
जब हम यहां आए थे तो सभी से अपरिचित थे। कोई हमें नहीं जानता था। चार मास के प्रवास में सभी से संबंध से बन गए। आज विदाई के समय ऐसा लग रहा है जैसे कि बेटी को विदाई दे रहे हैं, लेकिन साधु-संतों का संबंध उनसे व्यक्तिगत नहीं होता। उनके संबंध तो प्रवचन, धर्म से होते हैं। उनके सिद्धांतों पर अमल करना ही उनके साथ रिश्ते निभाना जैसा है। साध्वीजी बोले, साधु-संत तो व्यक्तियों के आदर्श होते हैं। भगवान महावीर से हम सबके 2551 साल पुराने संबंध हैं, उन रिश्तों को उनके सिद्धांतों के अनुसरण करके बनाए हुए हैं। इसी प्रकार हमने चार माह में जिनवाणी के जो बीज यहां बोए हैं, उन्हें पल्लवित करना ही हमारे साथ रिश्ते निभाने जैसा है। उन्होंने कहा कि धर्म और परमात्मा के साथ श्रद्धा को बहुत मजबूत करना है, सभी को जिन वाणी की फसल लहलहानी है। कार्तिक पूर्णिमा के पावन पर्व पर जैन धर्म के सबसे बड़े तीर्थ श्री शत्रुंजय (पालीताणा) महातीर्थ की भाव यात्रा का आयोजन किया गया। उन्होंने विदाई समारोह में कहा कि भगवान महावीर के शासन यह एक व्यवस्था है कि अपना चातुर्मासिक प्रवास पूर्ण कर साधु साध्वी भगवंतों को एक स्थान से दूसरे स्थान का परिवर्तन करना पड़ता है। श्री मुनिसुव्रत स्वामी राजेंद्रसूरि संघ अध्यक्ष दीपचंद कटारिया संघवी ने कहा कि श्रावकों की भावनाएं ऐसे जुड़ जाती हैं कि साधु साध्वियों को अलग करने का मन नहीं करता है परंतु व्यवस्था से चलना भी हमारी परम्परा है। भंवरलाल वेदमुथा ने कहा कि ओ पूज्य गुरुदेव,
4 महीने हाथ थामकर अब क्यों जा रहे हो? अब कौन सिखायेगा वो बाते जो हमको संस्कारित मानव बनाती है। भाव भंगिमा भरे कथनों के साथ उन्होंने कहा कि मत जाओ गुरुदेव यह दिल दुखाकर। ना कोई खून का रिश्ता था कभी आपसे, फिर कैसे घनिष्ठ हो गया, दिल का रिश्ता आपसे। इस दौरान अशोक श्रीश्रीमाल ने कहा कि आपकी सीख को जीवन में अपनाने का वायदा करते है। आज बहुत भारी मन से दे रहे है विदाई आपको आने वाले भावी जीवन में आपको मोक्ष प्राप्ति हो। विदाई समारोह में साध्वीश्री शीतलगुणाश्रीजी ने कहा कि श्रीसंघ की सेवा और सहयोग और समर्पण को कभी भूल नहीं पायेंगे।