दीपावली पर्व : जानें पांचाें दिनों के पावन तिथियों और उनके वैदिक महत्व का रहस्य – Chhotikashi.com

दीपावली पर्व : जानें पांचाें दिनों के पावन तिथियों और उनके वैदिक महत्व का रहस्य

नई दिल्ली। कार्तिक मास का यह पावन समय दीपावली जैसे महापर्व की आहट दे रहा है। दीपावली केवल एक दिन का उत्सव नहीं, बल्कि पाँच दिनों तक चलने वाला एक महापर्व है, जिसका हर दिन अपना एक विशेष धार्मिक, आध्यात्मिक और पौराणिक महत्व रखता है। प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य एवं वैदिक विद्वान पंडित प्रभाकर चक्रवर्ती ने इन तिथियों और उनके शास्त्रीय आधार को विस्तार से समझाया है।
पंचांग पर्व: तिथि और महत्व
1. धनत्रयोदशी (धनतेरस) – 18 अक्टूबर 2025
पंडित चक्रवर्ती के अनुसार, इस दिन भगवान धन्वंतरि का समुद्र-मंथन से अवतरण हुआ था, इसलिए आरोग्य और दीर्घायु की कामना के लिए इस दिन का विशेष महत्व है। आयुर्वेदिक शास्त्रों में इस तिथि को स्वास्थ्य के लिए अत्यंत शुभ माना गया है। साथ ही, इस दिन कुबेर पूजन का भी विधान है, जिससे धन-धान्य में वृद्धि होती है। वेदों में कहा गया है कि इसी दिन समुद्र मंथन से भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। अतः यह दिन आरोग्य, आयु और धन-समृद्धि का प्रतीक है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन सोना, चाँदी या धातु का पात्र खरीदना शुभ होता है।"धनत्रयोदशी स्वास्थ्य का दीप जलाने का पहला दिन है", ऐसा ब्रह्म श्री चिलकमर्थी प्रभाकर चक्रवर्ती बताते हैं।
2. नरक चतुर्दशी (छोटी दिवाली) - 19 अक्टूबर 2025
इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अधर्मी राजा नरकासुर का वध करके 16,000 कन्याओं को उसकी कैद से मुक्त कराया था। पुराणों के अनुसार, इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करने और दीप जलाने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है और आयु में वृद्धि होती है। यह अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है। पौराणिक कथाओं में श्रीकृष्ण ने इसी दिन नरकासुर राक्षस का वध किया था। यह दिन अंधकार और पापों के विनाश का प्रतीक है। शास्त्रों में कहा गया है कि सूर्योदय से पूर्व “अभ्यंग स्नान” करने से पाप क्षय होता है।
3. दीपावली (लक्ष्मी पूजन) - 20 अक्टूबर 2025
यह मुख्य पर्व का दिन है। इस दिन भगवान राम चौदह वर्ष का वनवास पूरा करके अयोध्या लौटे थे। अयोध्यावासियों ने उनके स्वागत में घी के दीप जलाए थे। इसी दिन माता लक्ष्मी का समुद्र-मंथन से भी अवतरण हुआ था। वेदों और पुराणों में इस दिन लक्ष्मी-गणेश के पूजन का विधान है, जिससे घर में सुख-समृद्धि, धन-धान्य और मंगलमय वातावरण का निवास होता है। दीपावली की रात्रि अमावस्या होती है — “तमसो मा ज्योतिर्गमय” की वैदिक भावना इसी दिन प्रत्यक्ष होती है।इस दिन घरों में दीप जलाकर, माँ लक्ष्मी, भगवान गणेश, सरस्वती एवं कुबेर की पूजा की जाती है। वेदों के अनुसार दीप जलाना अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करने का प्रतीक है।4. बलि प्रतिपदा (गोवर्धन पूजा/अन्नकूट) - 22 अक्टूबर 2025
महत्व : इस दिन भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से तीन पग भू-मांगी थी और उन्हें पाताल लोक का स्वामी बनाया था। इसके साथ ही, इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र का अहंकार चूर करते हुए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की थी। इसलिए इस दिन गोवर्धन पूजा और अन्नकूट का आयोजन किया जाता है। यह प्रकृति और पशुधन के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है। यह पर्व श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने की स्मृति में मनाया जाता है। इससे मानव और प्रकृति के बीच संतुलन का संदेश मिलता है।शास्त्रों में इसे “अन्नकूट” भी कहा गया है, जिसमें विविध प्रकार के व्यंजन भगवान को अर्पित किए जाते हैं।
5. भाई दूज (यम द्वितीया) - 23 अक्टूबर 2025
महत्व: इस दिन का महत्व भाई-बहन के अटूट प्रेम-बंधन से है। पौराणिक कथा के अनुसार, इस दिन यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने आए थे और उन्होंने उन्हें वरदान दिया था कि इस दिन जो भाई बहन के यहां जाकर भोजन करेगा, उसे मृत्यु का भय नहीं रहेगा। शास्त्रों में इस परंपरा को भाई की दीर्घायु और सुखमय जीवन का कारक माना गया है। इस दिन यम और यमुना की कथा प्रसिद्ध है। बहनें अपने भाइयों को तिलक कर दीर्घायु की कामना करती हैं।शास्त्रों के अनुसार यह दिन भाई-बहन के प्रेम, कर्तव्य और संरक्षण की भावना का प्रतीक है।
वैदिक दृष्टिकोण: क्यों हैं ये पर्व महत्वपूर्ण?
पंडित प्रभाकर चक्रवर्ती ने बताया कि वेदों और पुराणों में इन पर्वों का उल्लेख केवल कथाओं तक सीमित नहीं है। इनका गहरा ज्योतिषीय और आध्यात्मिक आधार है। ये पाँच दिन विशेष रूप से ब्रह्मांडीय ऊर्जाओं के संतुलन और पृथ्वी पर सकारात्मकता के प्रवाह का समय होते हैं। दीप जलाने की परंपरा न केवल बाहरी अंधकार को दूर करती है, बल्कि यह हमारे अंदर के अज्ञान, लोभ, मोह और अहंकार रूपी अंधकार को भी दूर करने का संकल्प है। लक्ष्मी पूजन का तात्पर्य केवल भौतिक धन से नहीं, बल्कि ज्ञान, सद्गुण, समृद्धि और आत्मिक शांति की प्राप्ति से है। पंडित चक्रवर्ती ने सभी पाठकों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए कहा कि इन पर्वों के वास्तविक महत्व को समझकर ही हम इसके पूर्ण लाभ प्राप्त कर सकते हैं और एक सुखी, समृद्ध और मंगलमय जीवन की ओर अग्रसर हो सकते हैं।


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