ऊंटनी का दूध मानव स्वास्थ्य के लिए उपयोगी, दुग्ध व्यवसाय के तौर पर ऊंटपालक इसे अपनाएं-प्रो.के.एम.एल.पाठक
बीकानेर। राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र (एनआरसीसी), बीकानेर ने अपना 40वां स्थापना दिवस समारोहपूर्वक मनाया। इस अवसर पर ‘ऊंट डेयरी एवं इकोटूरिज्म में उद्यमिता के अवसर’ विषयक कृषक-वैज्ञानिक-हितधारक परिचर्चा का भी आयोजन किया गया। प्रथम सत्र में आयोजित स्थापना दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में प्रो.के.एम.एल.पाठक, पूर्व डीडीजी,आईसीएआर एवं वीसी, दुवासु, विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. ए.के.तोमर, निदेशक, सीएसडब्ल्युआरआई, अविकानगर, सम्माननीय अतिथि गोपाल सिंह भाटी, एग्जेक्युटिव डायरेक्टर, केन्द्रीय ऊन विकास बोर्ड, जोधपुर व डॉ. नवीन मिश्रा, अतिरिक्त निदेशक, पशुपालन विभाग, राज. ने शिरकत कीं। वहीं इस कार्यक्रम में बीकानेर स्थित आईसीएआर संस्थानों के प्रभागाध्यक्ष, किसानों, उद्यमियों आदि मौजूद रहे।
मुख्य अतिथि प्रो.के.एम.एल.पाठक ने अपने अभिभाषण में कहा कि ऊंटनी का दूध मानव स्वास्थ्य के लिए उपयोगी है, अतः इसे बढ़ावा देने हेतु ऊंटपालक दुग्ध व्यवसाय के तौर पर इसे अपनाएं। उन्होंने उष्ट्र इकोटूरिज्म में प्रबल संभावनाएं, उष्ट्र पालन में आ रही चुनौतियों खासकर चरागाह की कमी, दूध को लेकर समाज में फैली भ्रांतियों, पशुपालकों को षिक्षित/जागरूक करने, युवाओं का रूझान बढ़ाने, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ऊँट का महत्व प्रतिपादित करने आदि विभिन्न पहुलओं पर अपनी बात रखीं।
डॉ. ए.के.तोमर ने ऊंटनी के दूध को ‘रामबाण की संज्ञा देते हुए एनआरसीसी में विकसित मूल्य संवर्धित दुग्ध उत्पादों का हवाला दिया तथा कहा कि ऊंटपालक इस व्यवसाय के रूप में अपनाकर अपनी आमदनी बढ़ाएं। डॉ. .तोमर ने किसानों को नवाचार करने, नई तकनीकियों को अपनाने व मिश्रित पशुपालन हेतु प्रोत्साहित किया।
केन्द्र निदेशक डॉ. आर्तबन्धु साहू ने विगत वर्षों में एनआरसीसी के अनुसंधान कार्यों एवं प्राप्त वैज्ञानिक उपलब्धियों की जानकारी दी तथा कहा कि इस प्रजाति में विद्यमान विलक्षणताएं को देखते हुए ऊंट को ‘औषधि का भण्डार‘ कहा जाए तो कोई अतिषयोक्ति नहीं होगी। डाॅ.साहू ने कहा कि ऊंटनी के दुग्ध व्यवसाय के साथ-2 इसे विभिन्न आयामों यथा-ऊन, चमड़ी, पर्यटन आदि उपयोग में लिया जाना चाहिए ताकि ऊंटपालकों की आमदनी बढ़ सकें। डाॅ.साहू ने प्रदेष में ऊंटपालकों हेतु चलाई गई उष्ट्र संरक्षण योजना हेतु राशि बढ़ाने की भी बात कही।
डॉ. नवीन मिश्रा ने कहा कि एनआरसीसी द्वारा ऊंटनी के दूध की औषधीय उपयोगिता को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से उजागर किया गया है, अतः इस सामूहिक से सकारात्मक सोच के साथ ऊंट पालकों को आगे आना होगा।
दूसरे सत्र में तकनीकी व्याख्यानों में डॉ. आर.पी.अग्रवाल द्वारा मधुमेह में ऊंटनी के दूध के महत्व को उजागर किया। डॉ. कौशल शर्मा ने मंदबुद्धि बच्चों में ऑटिज्म प्रबंधन के लिए ऊँटनी के दूध का महत्व बताया। सरहद डेयरी, गुजरात के प्रतिनिधि श्याम भटनागर ने ऊंटनी के दूध से जुड़े अमूल के प्रयासों के बारे में जानकारी दी। कोयम्बटुर, तमिलनाडू से आए मणिकंडन ने दक्षिण भारत में शुरू की गई ऊंटनी के दूध की डेयरी के बारे में बताया। सारिका राईका दूध भण्डार, जयपुर के श्री नरेश, सिरोही के सेवाराम तथा जैसलमेर के सुमेर सिंह भाटी ने ऊंटनी के दुग्ध विपणन के बारे में चर्चा की। उरमूल सीमांत समिति के हर्ष ने समिति द्वारा किए गए प्रयासों के बारे में बताया। अन्य उद्यमियों ने भी अपने कार्यों के बारे में चर्चा कीं। केन्द्र के निदेशक डॉ. साहू ने दूध से जुड़ी उद्यमिता, डॉ. सावल ने पर्यटन से जुड़ी उद्यमिता के बारे में व्याख्यान दिया।
अतिथियों द्वारा केन्द्र से प्रकाषित ‘ऊंटों के साथ मानवीय व्यवहार का विमोचन किया गया वहीं उन्होंने ‘ऊंटनी के दूध से निर्मित फ्रीज ड्राइड पाउडर‘ आमजन के लिए जारी किया। इस अवसर पर उत्कृष्ट कार्यों के लिए कार्मिकों को तथा खेलकूद प्रतियोगिताओं के विजेताओं को पुरस्कृत किया गया। डॉ. वेद प्रकाश, वरिष्ठ वैज्ञानिक, डॉ. बसंती ज्योत्सना, डॉ. एस.एस.चौधरी तथा टीम के सदस्यों ने कार्यक्रम का समन्वय किया।