परशुराम जयंती व अक्षय तृतीया दिवस विशेष.. इंदौर के समीप जानापाव कुटी है, भगवान परशुरामजी की जन्मस्थली
इंदौर। मध्यप्रदेश के इंदौर से 45 कि.मी.दूर जानापाव कुटी है, यहाँ से 4 कि.मी. की दूरी पर स्थित है शिव मन्दिर। एक किवदंती के अनुसार भगवान परशुराम का यहीं जन्म हुआ था।
यहाँ पर परशुरामजी के पिता ऋर्षि जमदग्नि का आश्रम था। कहते हैं कि प्राचीन काल में इंदौर के पास ही मुंडी गाँव में स्थित रेणुका पर्वत पर माता रेणुका रहती थीं। भगवान परशुराम शिव के एक मात्र शिष्य थे, जिन्हें भगवान ने शस्त्र-शास्त्र का ज्ञान दिया दिया था। जानापाव जैसा नाम वैसा ही मार्ग। 3600 फीट ऊंची पहाड़ी पर विराजे भगवान परशुरामजी। संकरे रास्तों में अंधे मोड़, नाले, घनी झाडियां और जंगली जानवरों का डर, यह सब पार करने के बाद पहुंचते हैं जानापाव। जानापाव पहुंचते ही आप इन सारी समस्याओं को भूल जाते थे, क्योंकि यहां आपके सामने होता है शानदार नजारा और भगवान परशुरामजी की जन्म स्थली से जुड़े राज। उल्लेखनीय है कि महर्षि जमदग्रिजी की तपोभूमि तथा भगवान परशुरामजी की जन्मस्थली जानापाव, इंदौर की महू तहसील के हासलपुर गांव में स्थित है।
मान्यता है कि जानापाव में जन्म के बाद भगवान परशुरामजी शिक्षा ग्रहण करने कैलाश पर्वत चले गए थे। जहां भगवान शंकरजी ने उन्हें शस्त्र-शास्त्र का ज्ञान दिया और शिक्षा पूर्ण होने पर फरसा और धनुष दिया था। इसी फरसे से परशुरामजी ने 17 बार धरती को क्षत्रिय विहीन किया था। भगवान शंकरजी द्वारा दिया गया धनुष भगवान परशुराम ने मिथिला नरेश के यहां पर रख दिया था, जिसे बाद में भगवान राम ने सीता स्वयंवर में तोड़ा था, जिससे भगवान परशुराम रुष्ट हो गए थे।
जानपाव पहुंचने के दो रास्ते हैं। एक रास्ता पहाड़ाें के बीच से होकर जाता है, जबकि दूसरा पक्का मार्ग है।
कुंड से निकलती है ये नदियां..
जानापाव पहाड़ी से साढ़े सात नदियां निकली हैं। इनमें कुछ यमुना व कुछ नर्मदा में मिलती हैं। यहां से चंबल, गंभीर, अंगरेड़ व सुमरिया नदियां व साढ़े तीन नदियां बिरम, चोरल, कारम व नेकेड़ेश्वरी निकलती हैं।
ये नदियां करीब 740 किमी बहकर अंत में यमुनाजी में तथा साढ़े तीन नदिया नर्मदा में समाती हैं।
भगवान परशुरामजी के जन्म के संबंध में प्रचलित कथाएं..
उज्जैन स्थित विश्वस्तरीय बाबा महाकाल मंदिर के पुजारी परिवारों से जुड़े पंडित हेमन्त व्यास ने बताया कि भगवान परशुरामजी के पिता भृगुवंशी ऋषि जमदग्रिजी और माता राजा प्रसेनजीत की पुत्री रेणुका थीं। ऋषि जमदग्रिजी बहुत तपस्वी और ओजस्वी थे। ऋषि जमदग्रिजी और रेणुका के पांच पुत्र रुक्मवान, सुखेण, वसु, विश्ववानस और परशुराम हुए। एक बार रेणुका स्नान के लिए नदी किनारे गईं। संयोग से वहीं पर राजा चित्ररथ भी स्नान करने आया था। राजा को देख रेणुका उस पर मोहित हो गईं। ऋषि ने योगबल से पत्नी के इस आचरण को जान लिया। उन्होंने अपने पुत्रों को मां का सिर काटने का आदेश दिया। किंतु परशुराम के अलावा सभी ने ऐसा करने से मना कर दिया। परशुराम ने पिता के आदेश पर मां का सिर काट दिया। क्रोधित पिता ने आज्ञा का पालन न करने पर अन्य पुत्रों को चेतना शून्य होने का श्राप दिया, जबकि परशुराम को वर मांगने को कहा। तब परशुराम ने तीन वरदान मांगे ; पहला, माता को फिर से जीवन देने और माता को मृत्यु की पूरी घटना याद न रहने का वर मांगा। दूसरा, अपने चारों चेतना शून्य भाइयों की चेतना फिर से लौटाने का वरदान मांगा।
तीसरा, वरदान स्वयं के लिए मांगा, जिसके अनुसार उनकी किसी भी शत्रु से या युद्ध में पराजय न हो और उनको लंबी आयु प्राप्त हो।
पिता जमदग्रिजी अपने पुत्र परशुराम के ऐसे वरदानों को सुनकर गदगद हो गए और उनकी कामना पूर्ण होने का आशीर्वाद दिया।
बहुत खूबसूरत है इंदौर का पहला हिल स्टेशन..
इंदौर से वरिष्ठ पत्रकार हेमन्त व्यास बताते हैं कि जानापाव को वन विभाग ने एक रिसॉर्ट और हिल स्टेशन की शक्ल में तैयार किया है। अब यहां आने वाले रुक कर ही इस खूबसूरत जगह को देख सकेंगे।