रमक झमक की ‘म्हारी गणगौर” पुस्तक का लोकार्पण
बीकानेर। संभाग मुख्यालय के संस्कृतिकर्मी व रमक झमक के प्रहलाद ओझा 'भैरुं' द्वारा संकलित व सम्पादित पुस्तक 'म्हारी गणगौर' का लोकार्पण इतिहासकार डॉ बी एल भादाणी, वरिष्ठ लोक गायिका (आकाशवाणी ) पदमा व्यास, साहित्यकार डॉ रेणुका व्यास, लेखिका मोनिका गौड़ एवं प्रहलाद ओझा 'भैरुं' द्वारा किया गया।
इस अवसर पर डॉ बी एल भादाणी ने कहा कि गणगौर इस प्रदेश का धार्मिक एवं सांस्कृतिक उत्सव है। प्रदेश की हर महिला चाहे वो कुंवारी, शादीशुदा सुहागिन हो अथवा विधवा सब महिलाएं गणगौर को पूजती है एवं उत्सव को बड़ी धूम धाम से मनाती है। उन सबके लिये और आने वाली पीढ़ी की महिलाओं के लिये तो ये बहुत उपयोगी है ही वहीं शोधार्थियों के लिये भी ये बहुत उपयोगी साबित होगी।वरिष्ठ लोक गायिका पदमा व्यास ने कहा कि गणगौर के गीत सुबह-दोपहर-शाम महिलाएं गाती है। वहीं रात को बीकानेर और कोलकाता में पुरुष भी गवरज की गीत मंडलियां बनाकर गवरजा के गीत गाते है जिससे बीकानेर गवरमय हो जाता है। इस पुस्तक में परम्परागत गीतों का संकलन होने से पुस्तक न केवल महिलाओं के लिये वरन पुरुषों के लिये भी लाभदायक साबित होगी।
व्यास ने कहा कि 'म्हारी गणगौर'' पुस्तक में स्कैनर दिया है उसको स्कैन कर परम्परागत गीत की राग सुनी जा सकती है, यह अबतक का अनूठा प्रयास है। जिन बालिकाओं को गीत की राग नहीं पता उनके लिये यह वरदान साबित होगी।
लेखिका मोनिका गौड़ ने कहा कि गवर पूजन-व्रत-कथा इतिहास और खाशकर स्थानीय भाषा शैली में गाए जाने वाले गीतों का संकलन एक ही पुस्तक में होने से जिज्ञासुओं को इधर उधर भटकना नहीं पड़ेगा।
'म्हारी गणगौर' पुस्तक के सम्पादक प्रहलाद ओझा 'भैरुं' ने पुस्तक में शामिल विषयों पर प्रकाश डाला। ओझा ने कहा कि मेरे पिताजी छोटुजी ओझा ने कहा था कि संस्कृति की सेवा ईश्वर सेवा से कम नहीं है इसलिये संस्कृति के लिये रमक झमक करते रहना। उनकी प्रेरणा व आशीर्वाद से ही ऐसी पुस्तक का प्रकाशन सम्भव हो पाया है। ओझा ने कहा कि राजस्थानी भाषा साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष स्व.शिवराज छंगाणी ने इस पर अपनी महत्वपूर्ण राय लिखी लेकिन उनके रहते इसका लोकार्पण नहीं हो पाया, लेकिन खुशी है कि लोकार्पण गणगौर पर्व पर हो गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता रामकवरी ओझा ने की। संयोजन शोभा व्यास ने किया। गोविंद छंगाणी ने आभार प्रकट किया। रमक झमक की ओर से अतिथियों का स्वागत भंवरी देवी छंगाणी ने किया।